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Articles by डेविड रोपर

सड़क जिस पर यात्रा नहीं की गयी हो

लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या मेरे पास पंचवर्षीय योजना है l जिस सड़क पर मैंने कभी यात्रा नहीं की है, मैं पांच साल “आगे” की योजना कैसे बना सकता हूँ?

मैं मुड़कर 1960 के दशक में देखता हूँ जब मैं सैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में विद्यार्थी के मध्य पासबान था l मैं कॉलेज में भौतिक शिक्षा में विशेषता प्राप्त करने गया था और बहुत आनंद किया था, परन्तु मैं विद्वता हासिल नहीं कर सका l अपनी नयी जिम्मेदारी में मैंने खुद को अयोग्य महसूस किया l अधिकाँश दिन मैं परिसर में घूमता रहा, अँधेरे में एक अंधे आदमी की तरह टटोलते हुए, परमेश्वर से पूछता रहा कि मुझे क्या करना है l एक दिन एक विद्यार्थी “अनपेक्षित रूप से” मुझ से अपनी बिरादरी में एक बाइबल अध्ययन में अगुवाई करने को कहा l यही आरम्भ था l

परमेश्वर एक मोड़ पर खड़े होकर रास्ता नहीं बताता है : वह मार्गदर्शक हैं, कोई संकेतचिन्ह नहीं l वह हमारे साथ चलता है, उन रास्तों पर ले चलता है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी l केवल हमें उसके साथ-साथ चलना है l

मार्ग सरल नहीं होगा; मार्ग में “कठिन स्थान” भी होंगे l  किन्तु परमेश्वर ने वादा किया है कि वह “अंधियारे को उजियाला” में बदल देगा और हमें “कभी न [त्यागेगा]” (यशायाह 42:16) l वह पूरे रास्ते हमारे साथ रहेगा l

पौलुस कहता है कि परमेश्वर “हमारी विनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता हैं” (इफिसियों 3:20) l हम योजना बना सकते हैं और कल्पना कर सकते हैं, परन्तु हमारे प्रभु की कल्पना हमारी योजनाओं से परे है l हमें उन्हें बंधनमुक्त रखना चाहिए और देखना चाहिए कि परमेश्वर के मन में क्या है l

यहाँ फिसलन है!

वर्षों पहले, जब मैं स्की(बर्फ पर फिसलना) करना सीख रहा था, मैंने नीचे की ओर दिखाई देनेवाले हलके ढलान पर अपने बेटे जोश का पीछा किया l उसपर नज़र रखते हुए मैं उसे देख न सका कि वह पहाड़ पर सबसे खड़ी ढाल पर मुड़ गया, और मैं खुद को पूरी तरह से अनियंत्रित उस ढलान पर डगमगाते हुए पाया l अवश्य ही, मैं निराश हुआ l

भजन 141 दर्शाता है कि किस तरह हम सरलता से पाप के ढलान पर खुद को फिसलते हुए पाते हैं l प्रार्थना उन ढलानों में सतर्क रहने का एक तरीका है : “मेरा मन किसी बुरी बात की ओर फिरने न दे” (पद.4) एक निवेदन है जो लगभग वास्तव में प्रभु की प्रार्थना को प्रतिध्वनित करता है: “और [मुझे] परीक्षा में न ला, परन्तु [मुझे] बुराई से बचा” (मत्ती 6:13) l अपनी भलाई में, परमेश्वर इस प्रार्थना को सुनता है और उसका उत्तर देता है l

और उसके बाद मैं इस भजन में अनुग्रह का एक और कारक पाता हूँ : एक विश्वासयोग्य मित्र l “धर्मी मुझ को मारे तो यह कृपा मानी जाएगी, और वह मुझे ताड़ना दे, तो यह मेरे सिर पर का तेल ठहरेगा; मेरा सिर उससे इन्कार न करेगा” (भजन 141:5) l परीक्षाएं छली होती हैं l हम हमेशा सतर्क नहीं होते हैं कि हम गलत कर रहे हैं l एक सच्चा मित्र निष्पक्ष हो सकता है l “जो घाव मित्र के हाथ से लगें वह विश्वासयोग्य हैं” (नीतिवचन 27:6) l डांट स्वीकार करना कठिन है, परन्तु यदि हम चोट लगने को “भलाई” के रूप में देखते हैं यह अभ्यंजन बन सकता है जो हमें पुनः आज्ञाकारिता के पथ पर ला देता है l

हम एक भरोसेमंद मित्र की ओर से सच्चाई के प्रति तैयार रहें और प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर पर निर्भर रहें l  

रोटी और मछली

एक युवक चर्च से घर पहुंचकर बड़ी उत्तेजना के साथ बोला कि आज का पाठ एक युवा के विषय था जो “पूरे दिन इधर उधर घूमा और मछली पकड़ा l” निसन्देह, वह, उस छोटे लड़के के विषय सोच रहा था जिसने यीशु को रोटी और मछली दी थी l

यीशु पूरे दिन भीड़ को शिक्षा दे रहा था, और शिष्यों की राय थी कि वह उन्हें रोटी खरीदने के लिए गाँव में भेज दे l यीशु ने उत्तर दिया, “तुम ही इन्हें खाने को दो” (मत्ती 14:16) l शिष्य घबरा गए क्योंकि 5,000 से भी अधिक लोगों को भोजन खिलाने की बात थी!

आप बाकी कहानी जानते होंगे : एक लड़के ने अपना भोजन दिया – पांच छोटी रोटियाँ और दो मछली – और यीशु ने उससे भीड़ को खिला दिया (पद.13-21) l एक विचार के अनुसार लड़के ने उदारता दिखाकर सरलता से भीड़ में अन्य लोगों को अपना भोजन साझा करने को प्रेरित किया, परन्तु मत्ती चाहता है कि हम समझें कि वह एक आश्चर्यक्रम था, और यह कहानी चारों सुसमाचारों में मिलती है l

हम क्या सीख सकते हैं? परिवार, पड़ोसी, मित्रगन, सहयोगी, और दूसरे हमारे चारों ओर विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं में होते हैं l क्या हम उनको अपनी योग्यता से बड़े लोगों के पास भेज दें? बिलकुल, कुछ लोगों की ज़रूरतें हमारी सहायता करने की योग्यता से अधिक हैं, लेकिन हमेशा नहीं l जो भी आपके पास है – सीने से लगाना, एक दयालु शब्द, सुनने वाला कान, छोटी प्रार्थना, कुछ बुद्धिमत्ता जो आपके पास है – यीशु को दे दें और देखें वह क्या कर सकता है l

आनंद के साथ खेलना

मेरा एक बेटा ब्रायन, हाई स्कूल बास्केटबॉल कोच है l एक साल, जब उसकी टीम वाशिंगटन स्टेट बास्केटबॉल टूर्नामेंट के दौरान बॉल को आगे की तरफ ले जाने की कोशिश कर थी, शहर के नेक-नियत लोगों ने पूछा, “क्या तुम लोग पूरे वर्ष जीतोगे?” दोनों ओर के खेलाड़ी और कोच तनावग्रस्त हो गए, इसलिए ब्रायन ने एक आदर्श-वाक्य(motto) अपना लिया : “आनंद के साथ खेलें!”

मैंने इफिसुस के प्राचीनों से कहे गए पौलुस के शब्दों पर विचार किया : “कि मैं अपनी दौड़ को [प्रेम के साथ] पूरी करूँ” (प्रेरितों 20:24) उसका लक्ष्य उस सेवा कार्य को पूरी करना था जिसे यीशु ने उसे दिया था l मैंने इन शब्दों को अपना आदर्श वाक्य और अपनी प्रार्थना बना  ली है : “मैं भी अपनी दौड़ को आनंद के साथ पूरी कर सकूँ l” या जिस प्रकार ब्रायन कहता है, “मैं भी आनंद के साथ खेल सकूँ!” और बहरहाल, ब्रायन की टीम ने उस वर्ष स्टेट चैंपियनशिप जीत ली l

हममें से हर एक के पास चिड़चिड़ा होने के लिए सारे अच्छे कारण हैं : संसार की खबरें, दैनिक तनाव, स्वास्थ्य समस्याएँ l तिस पर भी, यदि हम उससे मांगते हैं, परमेश्वर हमें ऐसा आनंद दे सकता है जो इन परिस्थितियों से आगे जाती है l हम उसे पा सकते हैं जिसे यीशु ने कहा, “मेरा आनंद” (यूहन्ना 15:11) l

आनंद यीशु की आत्मा का फल है (गलातियों 5:22) l इसलिए हम प्रति भोर याद से उससे सहायता मांगे : “मैं आनंद से खेल सकूँ!” लेखक रिचर्ड फोस्टर ने कहा, “प्रार्थना करना बदलना है l यह महान अनुग्रह है l परमेश्वर कितना भला है जो एक मार्ग बनाता है जहाँ आनंद हमारे जीवन पर अधिकार कर लेता है l

आएँ और उसे ले लें!

मैंने अंगूर के बाड़े के ऊपर से झांका जो हमारे पिछवाड़े के आँगन को चारों-ओर से घेरता है l वहाँ मैंने उस पार्क के ट्रैक पर जो हमारे घर के पीछे वाले आँगन को चारों-ओर से घेरता है, लोगों को दौड़ते, जॉगिंग करते, टहलते, और ट्रैक पर टेढ़ी-मेढ़ी चाल से चलते हुए देखा l मैंने सोचा, जब मैं शरीर से मजबूत था तब ऐसा करता था l और असंतुष्टता की एक लहर मेरे ऊपर से गुज़र गयी l

बाद में, बाइबल पढ़ते समय, मैंने यशायाह 55:1 पढ़ा, “अहो सब प्यासे लोगों, पानी के पास आओ,” और मैंने पुनः जाना कि असंतुष्टता (प्यास) एक नियम है, इस जीवन में एक अपवाद नहीं है l कुछ भी नहीं, जीवन की अच्छी बातें भी, पूरी तौर से संतुष्ट नहीं कर सकती हैं l यदि मेरी टांगें शेरपा(पर्वत-आरोहण गाइड) की तरह होतीं, तब भी मेरे जीवन में कुछ ऐसा होता जिसके विषय मैं नाखुश रहता l

हमारी संस्कृति निरंतर हमसे किसी न किसी तरह से बोलती रहती है कि हमें कुछ करना है, कुछ खरीदना है, कुछ पहनता है, कुछ परफ्यूम(स्प्रे) लगाना है, या सैर करना है जो हमें अंतहीन सुख देंगे l परन्तु यह एक झूठ है l चाहे हम कुछ भी करें, हमें यहाँ पर और वर्तमान में किसी भी वस्तु से सम्पूर्ण संतुष्टता नहीं मिलेगी l

इसके बदले, यशायाह हमें बार-बार परमेश्वर और वचन की ओर लौटकर उसकी सुनने के लिए आमंत्रित करता है l और वह क्या कहता है? प्राचीन काल के दाऊद के लिए उसका प्रेम “अटल” और “सदा” का है (पद.3) l और वह आपके और मेरे लिये भी ऐसा है है! हम उसके पास “आ” सकते हैं l

कल के समान नहीं

जब मेरा नाती जे छोटा था उसके माता-पिता ने उसे उसके जन्मदिन पर एक नया टी-शर्ट दिया l उसने उसे उसी समय पहन लिया और उसे पहन कर गर्व से पूरे दिन घूमता रहा l

दूसरे दिन जब वह सुबह के समय उसी शर्ट में था, उसके पिता ने उससे पूछा, “जे, क्या तुम इस शर्ट से खुश हो?”

“कल की तरह नहीं,” जे ने उत्तर दिया l

सामग्री के अभिग्रहण से यही परेशानी है : जीवन की अच्छी वस्तुएं भी हमें गहरा, स्थायी आनंद नहीं दे सकते जिसकी हम प्रबल इच्छा रखते हैं l यद्यपि हमारे पास बहुत सम्पति हो सकती है, फिर भी हम नाखुश रहेंगे l

यह संसार वस्तुओं के अभिग्रहण के द्वारा आनंद को पेश करती है : नए कपड़े, नयी गाड़ी, एक आधुनिक फ़ोन या घड़ी l किन्तु कोई भी भौतिक अभिग्रहण हमें उतना आनंदित नहीं कर सकता जैसे बीते हुए कल में उससे मिला था l यह इसलिए है क्योंकि हम परमेश्वर के लिए बनाए गए थे और उससे कम से काम नहीं बनेगा l

एक दिन, जब यीशु उपवास कर रहा था और भूख से शिथिल हो गया, शैतान उसके निकट आया और रोटी बनाकर उसकी भूख को मिटाने के लिए उसकी परीक्षा की l यीशु ने उसका सामना व्यवस्थाविवरण 8:3 उद्धृत करते हुए किया, “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं जीवित रहता, परन्तु जो जो वचन यहोवा के मुहँ से निकलते हैं” (मत्ती 4:4) l

यीशु का यह मतलब नहीं था कि हम केवल रोटी ही पर जीवित रहें l वह एक सच्चाई का आरम्भ कर रहा है : “हम आत्मिक प्राणी हैं और इसलिए हम केवल भौतिक वस्तुओं पर जीवित नहीं रह सकते हैं l

वास्तविक संतुष्टि परमेश्वर और उसके बहुतायत से मिलती है l

रुई का रोआं और दूसरी चीज़ें

विन्नी द पू का एक प्रसिद्ध कथन है “जिस व्यक्ति से आप बात कर रहे हैं, यदि वह सुनता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा हो तो धैर्यवान बने रहें। यह भी हो सकता है कि उसके कान में रुई का एक रोआं हो। 

वर्षों से मैंने सीखा है कि विन्नी कुछ कर रहा है।  जब कोई आपको नहीं सुनता, यद्यपि आपकी सलाह को सुनना उनके लिए हितकर होगा, तो हो सकता है कि उनकी चुप्पी उनके कान में एक रुई के रोएँ से अधिक और कुछ न हो। या हो सकता है कि कोई और बाधा हो। कुछ लोगों के (लिए) सुनना बहुत ही कठिन होता है, क्योंकि वे अन्दर से टूटे हुए और निरुत्साहित होते हैं।  

मूसा ने कहा कि उसने इस्राएल के लोगों से बात की परन्तु उन्होंने नहीं सुना क्योंकि उनकी आत्माएँ दुखी और उनका जीवन कठिन था (निर्गमन 6:9) । इब्रानी लेख में निरुत्साह शब्द का शब्दशः अर्थ “साँस का फूलना” होता है, जो मिस्र में उनके दासत्व का परिणाम था। उस परिस्थिति में, इस्राएल का मूसा के समझ और दया के निर्देशों को सुनने के लिए इच्छा न रखना, क्या निन्दा करने के योग्य नहीं है।

जब दूसरे लोग हमारी बात को नहीं सुनते, तब हमें क्या करना चाहिए? विन्नी द पू के शब्द बुद्धि से परिपूर्ण हैं: “धैर्यवान रहो। परमेश्वर कहते हैं, “प्रेम धैर्यवान है, प्रेम दयालु है” (1 कुरिन्थियों 13:4); वह प्रतीक्षा करने की इच्छा रखता है। उसका उस व्यक्ति में काम अभी समाप्त नहीं हुआ है। वह उनके दुःख में, हमारे प्रेम, हमारी प्रार्थनाओं के द्वारा उनमें काम कर रहा है। शायद, अपने समय में, वह सुनने के लिए उनके कानों को खोल देगा। धैर्यवान बने रहें।

महान जागरूकता

जब मेरे बच्चे छोटे थे मैं परिवार, मित्रगण के साथ उन समारोहों की यादें संजोए रखा हूँ l व्यस्क देर रात तक बातचीत करते थे; हमारे बच्चे खेल से थके हुए सिकुड़ कर सोफे या कुर्सी पर सो जाते थे l

जब जाने का समय होता था मैं अपनी बाहों में अपने बेटों को उठाकर अपनी कार के पीछे वाली सीट पर लेटाकर घर ले जाता था l घर पहुँचकर, मैं उनको उठाता, उनके बिस्तर बनाता और चूमकर उन्हें शुभ रात्रि बोलकर और बित्तियाँ बुझाकर उन्हें सुला देता था l सुबह उनकी नींद घर में खुलती थी l

मेरे लिए यह रात का बहुत अच्छा रूपक बन गया है जब हम “यीशु में सो जाएंगे” (1 थिस्स.4:14) l हम गहरी नींद में सो जाते हैं . . . और अपने अनंत घर में जागते हैं, ऐसा घर जो हमारे थकान को मिटा देगा जो हमारे जीवन के दिनों को चिन्हित करता था l

पिछले दिनों मेरे सामने पुराना नियम का एक भाग आया जिससे मैं चकित हो गया – व्यवस्थाविवरण की समापन टिप्पणी : “तब यहोवा के कहने के अनुसार . . . मूसा वहीं मोआब के देश में मर गया” (34:5) l इब्री भाषा में इसका शब्दशः अर्थ है, “मूसा . . . परमेश्वर के मुँह के साथ मरा,” प्राचीन रब्बियों द्वारा अनुदित एक वाक्यांश, अर्थात, “परमेश्वर के चूमने से l”

क्या यह कल्पना करना अधिक है कि परमेश्वर पृथ्वी पर की हमारी अंतिम रात को हम लोगों पर झुका हुआ है, हमें सुला रहा है और चूमकर शुभ रात्रि कहता है? तब, जिस प्रकार जॉन डॉन ने जोरदार तरीके से कहता है, “एक छोटी सी नींद जो बीत गयी है, हम अनंत में जागेंगे l”

सूखी घास डालना

जब मैं कॉलेज में था, मैंने कोलोराडो में एक खेत पर गर्मियों में काम किया l एक शाम, खेत की लवाई करते हुए एक लम्बे दिन के अंत में थका और भूखा, मैंने ट्रैक्टर को यार्ड में घुसेड़ दिया l खुद को तेज़ निशानेबाज़ मानकर, मैंने स्टीयरिंग व्हील को दृढ़ता से बाईं ओर घुमाया, बाईं ब्रेक को दबाया, और ट्रैक्टर मोड़ दिया l
हँसिया नीचे था जिससे निकट रखे 500 गैलन डीजल टैंक के नीचे के पाँव खिसक गए l टैंक बड़ी आवाज़ के साथ धरती पर गिरा, उसके जोड़ खुल गए, और पूरा तेल बह गया l
मैं ट्रैक्टर से उतरा, अस्पष्ट आवाज़ में क्षमा मांगी, और - इसलिए कि मेरे मन में वह पहली बात आयी थी - बिना वेतन के पूरी गर्मी काम करने का प्रस्ताव रखा l
वृद्ध किसान एक पल के लिए उस बर्बादी को देखता रहा और घर की ओर मुड़ा l "चलो चलकर रात्रि भोजन खाते हैं," उसने कहा l
यीशु की बतायी हुयी कहानी का एक भाग मेरे मन में आया - एक युवा की कहानी जिसने एक बहुत ही ख़राब काम किया था : "पिता, मैंने स्वर्ग और आपके विरुद्ध पाप किया है," वह चिल्लाया l उसने आगे और बोलने की कोशिश की, " मुझे अपने एक मजदुर के समान रख लें," किन्तु अपने मुँह से सम्पूर्ण शब्दों को उच्चारित करने से पहले उसके पिता ने हस्तक्षेप किया l संक्षेप में, उसने कहा, "चलो चलकर रात्रि भोजन खाते हैं" (लूका 15:17-24) l
परमेश्वर का अनुग्रह ऐसा ही है l